जिला हरदोई के भौहापुर मढ़ी ग्राम नस्योली डामर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में असलापुर धाम से पधारें सुप्रसिद्ध कथावाचक परम पूज्य अनूप ठाकुर जी महाराज ने सत्संग की महात्वा को सुनाते हुए कहा कि मनुष्य में यदि विवेक वैराग्य की निवृत्ति नहीं तो समझो सुख शांति व कल्याण की प्राप्ति भी नहीं। महापुरुषों का कथन है कि बिनु सत्संग विवेक न होई, मोक्ष प्राप्ति का सबसे सहज साधन सत्संग है कि मनुष्य सदैव सत्संग की अमृतधारा में डुबकी लगाता रहे तो अपने जीवन को सफल बना सकता है। सत्संग को निरंतर सुधार की प्रक्रिया माना जा सकता है, जीवन में सुख-शांति, समृद्धि सत्संग से संभव है। श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस पर रूक्मिणी मंगल एवं भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा का मिलन का प्रसंग बड़े ही रोचक ढंग से सुनाया ठाकुर जी महाराज ने कहा, रुक्मणी विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थीं। रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी, तो उन्होंने मन ही मन श्रीकृष्ण को वर मान लिया था। रुक्मणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह राजा शिशुपाल से कराना चाहता था लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में देवी रुक्मिणी स्वीकार कर चुकीं थी। उन्होंने बताया कि जिस दिन शिशुपाल से विवाह होने वाला था, उसी दिन भगवान श्रीकृष्ण मंदिर से रुक्मिणी देवी को रथ से द्वारिका लाए और विवाह किया!
इसी के साथ अनूप महाराज ने कहा कि संसार में मित्रता भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होनी चाहिए। आधुनिक युग में स्वार्थ के लिए लोग एक-दूसरे के साथ मित्रता करते हैं और काम निकल जाने पर एक-दूसरे को भूल जाते हैं। ठाकुर महाराज ने बताया कि स्वाभिमानी सुदामा ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सखा कृष्ण का चितन और स्मरण नहीं छोड़ा। जिसके फलस्वरूप कृष्ण ने भी सुदामा को परम पद प्रदान किया। मित्रता करनी हैं तो कृष्ण और सुदामा की तरह करों, व्यास जी द्वारा मार्मिक प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गये इस मौके पर कथा श्रवणार्थ बाबा चन्दमादास, परिक्षित सत्येंद्र सिंह, रामपाल सिंह, आलोक अवस्थी, आचार्य सूरज त्रिवेदी, अनमोल त्रिवेदी, श्यामाचार्य, अनिल सिंह, अतुल सिंह, कल्लू सिंह,झब्बू कोटेदार समेत हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहें!